Madhu varma

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लेखनी कविता - हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी - ग़ालिब

हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी / ग़ालिब


हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी
दिल जोश-ए-गिर्या में है डूबी हुई असामी

उस शम्अ की तरह से जिस को कोई बुझा दे
मैं भी जले-हुओं में हूँ दाग़-ए-ना-तमामी

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